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शनिवार, १२ फेब्रुवारी, २०२२

I swear ***शपथ आहे मला ...****

            प्रेमात अशा अनेक संवेदना निर्माण करणाऱ्या गोष्ट होत असतात. मनामध्ये नवनवीन विचार, नवनवीन आठवणी आणि नवनवीन शब्दांच्या सोबत स्पर्शाची ही भाषा बोलली जाते. याच भाव विश्वातून घेतलेली ही भावना," शपथ आहे मला," कविता स्वरचित स्वलिखित आहे. आवडल्यास लाईक आणि शेअर करायला विसरू नका, धन्यवाद..!!

*** शपथ आहे मला ***

शब्दांना शब्द हवे असे नेहमीच 
वाटत राहते पण कधीकधी 
शब्दही कमी पडतात 
तुझ्या प्रेमळ स्पर्शाने 
शपथ आहे मला तुझ्या 
त्या स्पर्शाची.... 
शपथ आहे मला 
तुझ्या त्या मिठीत घेतलेल्या 
क्षणांची.... 
तुला कधीही विसरू 
शकत नाही, त्या 
क्षणांसाठी ...
शपथ आहे मलाच
माझी माझ्या प्रेमाची ...
माझ्या आठवणींची... 
शपथ आहे मला 
माझ्या फुललेल्या 
शब्दांची...!!!
©️®️सविता तुकाराम लोटे 

©️®️✍️Savita Tukaramji Lote
शीर्षक :- *** शपथ आहे मला ***

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           There are so many types it's hard to say.  This language of touch is spoken in the mind along with new thoughts, new memories and new words.  This sentiment, taken from the same sentimental universe, is "I swear," the poem is self-written.  If you like it, don't forget to like and share, thank you .. !!

 *** I swear ***

 Words always need words
 Feels good but sometimes
 Words also fall short
 With your loving touch
 I swear to you
 Of that touch ....
 I swear
 Taken in your arms
 Of moments ....
 Never forget you
 Can't, that
 For moments ...
 I swear
 My my love ...
 Of my memories ...
 I swear
 My flowers
 Of words ... !!!

            ©️®️Savita Tukaram Lote

 ©️®️Savita Tukaramji Lote
 Title: - *** I swear ***

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शुक्रवार, ११ फेब्रुवारी, २०२२

my promise In the role of listening ...Happy Promise Day

 
".... my promise
 In the role of listening ..."

 He says, I listen, he speaks, I am in the role of listening constantly ... !!

 Say no to madness
 Why should that be?
 The word is close to mine
 Why the role?
 Abol hote .... !!


 But I am constantly divided, why this role has been taken;  The flow of questions starts again in the mind and a journey of answers in the mind ..!  But in reality it is in the role of listening.

 Sometimes this fickle mother also comes to our notice unknowingly and the mother speaks, no questions but questions come in front of her and such questions are asked.

 Why do you have to listen every time?  Because the person in front of you loves you more than you do.  Our existence .. our words ... our living .... our way of thinking, our way of expression and our way of speaking is his.

 
Our existence is, "He is himself."

 Is that really the case?  Don't know  But the mother is more focused on this.  Life is so simple ... our existence is his.  Mom speaks easily, yes !!  Love takes everything from us and for that it also takes everything from us.

 Knows, our limits, all our emotions, the universe and our existence.  Just because of your love.  Doesn't he have love in it?  The answer may or may not always be.  Don't know where love is?

 Everything is different. Also, why should your role always be to listen and why it should not be.  The answer to this question, however, is in front of the nail marks.  Because we are in the role of listening.

 3 words is mine
 The word is his too
 Inertia, however, to his words
 Tenderness, however, to the role of the listener
 Whatever the wait
 Of blissful bliss
 Wow ... ...
 Success of sorrow ... !!!

She always put these words of mother in me in her rites.  No matter how old we get, those rites cannot go away from us and traditions, cultures fall behind somewhere.  In front of the rituals!

 Because these rites give us the power to fly.  They give you the power to hold the world in your hands.  Confidence gathers.  The wings have been shown solely to give a sense of proportion.

 A good personality happens and that is our strength ... success.

 The wings have been shown solely to give a sense of proportion
 Samskaras gained strength of self-esteem
 Self-esteem gained strength through struggle
 The struggle gained strength
 Good personality
 Of good manners

 4 That is why good manners never fail.  And never wins.  So they are with you ... becoming a successful personality ..!  (The definition of success varies from person to person.) So make your own promise.

 
 I will be respected in this society as a good person.  Facing the unattainable struggle between success and failure in mathematics ... will create a world of its own.  But with a witness of good manners and a loving kind heart. !!!!

 No matter the struggle, no matter the success, no matter the money.  "Good personality is the key to your life."  She is with you in any event and your personality is an acknowledgment of your values.  Promise yourself .... Happy promise Day ... !!!

 No matter what role you play.  Whether the role is to listen ... to speak ... whether it is in a role that loves someone dearly ... because good personalities are always successful in any role.  Because you have made a promise to yourself.  Your rites !!

 5 You are my hope of life
 You are my dream
 And the beginning of a loving relationship
 In my silk knot
 Only me with you
 And you with me


Although I am in a listening role, I am in a decisive role.  With you;  Forever and ever  With me ..!  Beyond my words and even though you have recently existed, I have always been attached to that role, but I have always been my mother's promise to those words.

 It is her constant effort to make a good person.  No matter what role I play with you ... as a woman I promise myself.  Everyone has a role to play.
 So promise yourself ...

 No matter what role I play, I think my performance will be that of a cultured personality.  So that in any case, I will keep my personality on that path of success ...

 Happy Promise Day to all my friends .. !!


✍️🏻©️®️Savita Tukaramji Lote
 Title: - Promise is mine
 In the role of listening ...

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..वादा है मेरा सुनने की भूमिका में .......Happy promise Day



     "  .....वादा है मेरा
 सुनने की भूमिका में ......."

        वो कहते है सुनता हूँ ...वो बोलता है मैं लगातार सुनने के रोल में हूँ...!!

 पागलपन को ना कहो
 ऐसा क्यों होना चाहिए?
 शब्द मेरे करीब है
 भूमिका क्यों?
 अबोल होते....!!


 लेकिन मुझे लगातार आश्चर्य होता है कि यह भूमिका क्यों ली गई है;  मन में फिर शुरू होती है सवालों की बहार और मन में जवाबों का सफर..!  लेकिन वास्तव में यह सुनने की भूमिका में है।

 कई बार अनजाने में ये चंचल मां भी हमारे सामने आ जाती है और मां बोलती है, उसके सामने कोई सवाल नहीं बल्कि सवाल आते हैं और ऐसे सवाल पूछे जाते हैं.

 आपको हर बार क्यों सुनना पड़ता है?  क्योंकि सामने वाला आपसे ज्यादा आपसे प्यार करता है।  हमारा वजूद..हमारी बातें...हमारी रहन-सहन....हमारी सोच, हमारी अभिव्यक्ति का ढंग और हमारे बोलने का ढंग उसका है.

 
हमारा अस्तित्व है, "वह स्वयं है।"

             क्या वाकई ऐसा है?  पता नहीं  लेकिन मां इस पर ज्यादा फोकस करती हैं।  जिंदगी कितनी सीधी है... हमारा वजूद उसका है।  माँ आराम से बोलती है, हाँ !!  प्यार हमसे सब कुछ लेता है और उसके लिए हमसे सबकुछ भी लेता है।

 जानिए, अपनी सीमाएं, अपनी सारी भावनाएं, अपनी दुनिया और अपने अस्तित्व को।  सिर्फ तुम्हारे प्यार की वजह से।  क्या उसमें प्रेम नहीं है?  उत्तर हमेशा हो भी सकता है और नहीं भी।  पता नहीं प्यार कहाँ है?

 सब कुछ अलग है। साथ ही, आपकी भूमिका हमेशा सुनने की क्यों होनी चाहिए और क्यों नहीं होनी चाहिए।  हालांकि इस सवाल का जवाब नाखून के निशान के सामने है।  क्योंकि हम सुनने की भूमिका में हैं।

 3 शब्द मेरे हैं
 शब्द उसका भी है
 जड़ता, हालांकि, उनके शब्दों के लिए
 कोमलता, तथापि, श्रोता की भूमिका के लिए
 इंतजार जो भी हो
 आनंदमय आनंद का
 बहुत खूब ... ...
 दुख की सफलता...!!!


अपने संस्कारों में वह हमेशा मुझमें मां के इन शब्दों को रखती हैं।  हमारी उम्र कितनी भी हो, वो संस्कार हमसे दूर नहीं जा सकते और परंपराएं, संस्कृतियां कहीं पीछे छूट जाती हैं।  संस्कारों के आगे!

 क्योंकि ये संस्कार हमें उड़ने की शक्ति देते हैं।  वे आपको दुनिया को अपने हाथों में पकड़ने की शक्ति देते हैं।  आत्मविश्वास बटोरता है।  पंखों को केवल अनुपात की भावना देने के लिए दिखाया गया है।

 एक अच्छा व्यक्तित्व होता है और यही हमारी ताकत है...सफलता।

 पंखों को केवल अनुपात की भावना देने के लिए दिखाया गया है
 संस्कारों ने प्राप्त की आत्म-सम्मान की शक्ति
 संघर्ष से आत्मबल को मिली ताकत
 संघर्ष को मिली ताकत
 अच्छा व्यक्तित्व
 अच्छे संस्कारों का

 इसलिए अच्छे संस्कार कभी असफल नहीं होते।  और कभी नहीं जीतता।  तो वो आपके साथ हैं... एक सफल शख्सियत बन रहे हैं..!  (सफलता की परिभाषा हर व्यक्ति में अलग-अलग होती है।) इसलिए अपना वादा खुद करें।

 
इस समाज में एक अच्छे इंसान के रूप में मेरा सम्मान होगा।  गणित में सफलता और असफलता के बीच अटूट संघर्ष का सामना करना... अपनी एक दुनिया बनाएगा।  लेकिन अच्छे शिष्टाचार और प्यार भरे दिल की गवाही के साथ !!!!

  चाहे कितना भी संघर्ष हो, कितनी भी सफलता और कितना भी पैसा क्यों न हो।  "अच्छा व्यक्तित्व आपके जीवन की कुंजी है।"  वह किसी भी घटना में आपके साथ है और आपका व्यक्तित्व आपके मूल्यों की स्वीकृति है।  खुद से वादा करो....हैप्पी प्रॉमिस डे...!!!

 कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या भूमिका निभाते हैं।  भूमिका चाहे सुनने की हो...बोलने की हो...चाहे वह भूमिका हो जो किसी से बेहद प्यार करती हो...क्योंकि अच्छी शख्सियत हमेशा किसी भी भूमिका में सफल होती है।  क्योंकि आपने खुद से एक वादा किया है।  आपका संस्कार !!

 तुम मेरी आशा हो
 तुम मेरा सपना हो
 और एक प्यार भरे रिश्ते की शुरुआत
 मेरी रेशमी गांठ में
 सिर्फ मैं तुम्हारे साथ
 और तुम मेरे साथ

 हालांकि मैं सुनने की भूमिका में हूं, लेकिन मैं निर्णायक भूमिका में हूं।  तुम्हारे साथ;  हमेशा हमेशा के लिए  मेरे साथ ..!  मेरे शब्दों और अपने हाल के अस्तित्व से परे, भले ही आप मेरी भूमिका में जोड़ दें, यह हमेशा मेरी मां का वादा है जो मुझे उन शब्दों के साथ है।

 एक अच्छा इंसान बनाने के लिए यह उनका निरंतर प्रयास है।  कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं आपके साथ क्या भूमिका निभाता हूं ... एक महिला के रूप में मैं खुद से वादा करती हूं।  हर किसी की भूमिका होती है।
 तो खुद से वादा करो...

 कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं क्या भूमिका निभाता हूं, मुझे लगता है कि मेरा प्रदर्शन एक सुसंस्कृत व्यक्तित्व का होगा।  ताकि मैं किसी भी हाल में अपने व्यक्तित्व को सफलता के उस पथ पर कायम रख सकूं...

 मेरे सभी दोस्तों को हैप्पी प्रॉमिस डे..!


 ✍️🏻©️®️सविता तुकारामजी लोटे
 शीर्षक:- वादा मेरा है
 सुनने की भूमिका में ...

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प्रॉमिस माझे ऐकण्याच्या भूमिकेत...Happy promise Day

 .....प्रॉमिस माझे 
      ऐकण्याच्या भूमिकेत...

      सांगतो तो, ऐकते मी, बोलतो तो, ऐकण्याच्या भूमिकेत असते मी सतत...!!

सांग वेड्या मना 
असे का व्हावे 
शब्दमाझ्या जवळी आहे 
तरी भूमिका का ?
अबोल होते....!!


         पण मला सतत वाटून जाते, हीच भूमिका का घेतली असेल; मनात परत प्रश्नांची चाहूल सुरू होते आणि एक प्रवास उत्तरांचा मनातच..! पण प्रत्यक्षात मात्र ऐकण्याच्या भूमिकेत असते.

         कधी कधी ही चलबिचल आईचाही लक्षात आपल्याही नकळत येऊन जाते  आणि आई बोलून जाते, प्रश्न नकोत पण प्रश्न येतात तिच्यासमोर आणि असे प्रश्न विचारले जातात.

       आपण प्रत्येक वेळी ऐकण्याच्या भूमिकेत का असायचे?  कारण आपल्या समोरच्या व्यक्तीवर आपल्यापेक्षाही जास्त प्रेम करीत असतो. आपले अस्तित्व..  आपले शब्द... आपले राहणे.... आपली विचारशैली,आपली भावशैली आणि आपली बोलशैली त्याची असते. 

     आपले अस्तित्व म्हणजे,"तो स्वतः ,असतो .म्हणूनच त्याच भूमिकेत दैनंदिन जीवन मार्ग समोर जावे लागते.

           खरंच असे असते का. माहित नाही? पण आई याच गोष्टीवर अधिक लक्ष केंद्रित करीत असते. जीवन इतके सोपे असते... आपले अस्तित्व त्याचे असते. आई सहज बोलून जाते, हो!! प्रेम आपल्याकडून सर्व काही करून घेते आणि त्यासाठी तो सुद्धा आपल्याकडून आपल्यालाही हवी तेसुद्धा सर्व करुन घेत असते. 

      माहित असते, आपली मर्यादा, आपल्या सर्व भावना ,भावविश्व आणि आपले अस्तित्व. फक्त आपल्या प्रेमामुळे. मग त्यात त्याचे प्रेम नसते का? उत्तर प्रत्येक वेळी नाही किंवा असू ही शकते. हे मग प्रेम कुठे असते माहित नाही?

        सर्वच गोष्टी अधांतरी.तसेच तर आपली भूमिका नेहमीच ऐकण्याची का असावी आणि ती का असू नये. हा प्रश्न या प्रश्नाचे उत्तर मात्र नखशिखांत प्रश्नचिन्ह समोरच असते. कारण आपण ऐकण्याच्या भूमिकेत असतो.

शब्द माझे आहे 
शब्द त्याचेही आहे 
जडत्व मात्र त्याच्या शब्दांना 
कोमलता मात्र ऐकणाऱ्याच्या भूमिकेला   
वाट कोणतीही असो 
सुखाची आनंदाची 
वा.. ...
दुःखाची यशस्वितेची...!!!


            आईचे हे शब्द नेहमी तिने तिच्या संस्कारांमध्ये माझ्यामध्ये घातले. आपण कितीही मोठे झालो तरी, ते संस्कार आपल्यातून उणे करू शकत नाही आणि परंपरा, संस्कृती कुठेतरी मागे पडतात. संस्कारांसमोर!

          कारण हेच संस्कार आपल्याला उडण्याची शक्ती देतात. आपल्या हातात विश्व समावून घेण्याची शक्ती देतात. आत्मविश्वास एकवटतात. पंखाना आकाशी उडण्यासाठी बळ देतात आणि जिंकण्याच्या मार्गावर एक एक पाऊल समोर जात जात, आपले स्वप्न आपल्या इच्छा आपल्यातील आपलेपणा जागृत ठेवून ते मिळवीत असतो.

       एक चांगले व्यक्तिमत्व घडत असते आणि  हीच आपली शक्ती असते... यशस्विता असते. 

पंखांना बळ मिळाले संस्कारांचे 
संस्कारांना बळ मिळाले स्वाभिमानाचे 
स्वाभिमानाला बळ मिळाले संघर्षाचे 
संघर्षला बळ मिळाले यशस्वीतेचे 
चांगल्या व्यक्तिमत्वाचे 
चांगल्या संस्काराचे 

        म्हणूनच चांगले संस्कार कधीही हरत नाही. आणि कधी जिंकत नाही. तर ते आपल्यासोबत असतात... यशस्वी व्यक्तिमत्व बनून..! (व्यक्तिपरत्वे यशस्वितेची व्याख्या वेगवेगळी असते ) म्हणून प्रत्येकाने स्वतः स्वतःची प्रॉमिस करा.

       मी एक चांगली व्यक्ती म्हणून या समाजात मानसन्मान मिळेल. यश-अपयश यामधील गणितात न राहता येणाऱ्या संघर्षाला समोर जात... स्वतः स्वतःचे एक विश्व तयार करील. पण चांगल्या संस्काराच्या साक्षीने आणि एक प्रेमळ मायाळू मनाने.!!!!

       संघर्ष कितीही असला तरी, यशस्विता कितीही असली तरी आणि पैसा कितीही असला तरी. "चांगले व्यक्तिमत्व, आपल्या आयुष्यातील शिदोरी आहे." ती कोणतीही घटना प्रसंगांमध्ये ती आपल्या सोबत असते आणि आपल्या त्या संस्कारांची पोचपावती असते आपले व्यक्तिमत्व. प्रॉमिस (promise)  करा स्वतः स्वतःसाठी....Happy promise Day...!!! 

        आपण कोणत्याही भूमिकेत असलो तरी. ती भूमिका ऐकण्याची असो... बोलण्याची असो.... ती कुणावर जीवापाड प्रेम करणाऱ्या भूमिकेत असो.... कारण चांगले व्यक्तिमत्व हे कधीही कोणत्याही भूमिकेत यशस्वी होत असतात. कारण आपण स्वतः स्वतःशी प्रॉमिस केलेले असते. आपल्या संस्कारांना!! 

जगण्याची आशा माझी तू 
स्वप्नाची माळ माझी तू 
आणि प्रेमळ नात्याची  सुरुवात 
माझ्या तुझ्या रेशीमगाठीत 
फक्त मी सोबत तुझ्या 
आणि तू सोबत माझ्या 

      मी ऐकण्याच्या भूमिकेत असले तरी निर्णायक भूमिकेत असते. तुझ्यासोबत; सदासर्वदा. माझ्या सोबत ..! माझ्या शब्दांच्या पलीकडे आणि अलीकडे तुझे अस्तित्व असले तरी माझ्या त्या भूमिकेला जोड मात्र नेहमी माझ्यावर झालेला माझ्या आईचे त्या शब्दांशी केलेले मी प्रॉमिस असते.

        एक चांगली व्यक्ती घडविण्यासाठी तिने केलेले सततचे प्रयत्न असते ते. मी तुझ्यासोबत कोणत्याही भूमिकेत असले... तरी एक स्त्री म्हणून स्वतःच स्वतःशी केलेले प्रॉमिस असते.  प्रत्येक व्यक्ती हा कोणत्या ना कोणत्या भूमकेत असतो.
म्हणून स्वतः स्वतःसाठी प्रॉमिस करा...

        मी कोणत्याही भूमिकेत असले तरी, मी माझे प्रदर्शन हे संस्कारित व्यक्तिमत्त्वाचे असेल. जेणेकरून कोणत्याही परिस्थितीत मी माझे व्यक्तिमत्व यशस्वीतेच्या त्या पायवाटेवर कायम कोरून ...पेरून ठेवेल.
 
हॅपी प्रॉमिस डे ऑल माय फ्रेंड्स..!!



©️®️✍️Savita Tukaramji Lote
शीर्षक :-     प्रॉमिस माझे 
                      ऐकण्याच्या भूमिकेत...

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मंगळवार, ८ फेब्रुवारी, २०२२

happy chocolate day

 ** आयुष्य डायरीवरती **

निखळ हसू तुझ्या गालावरील
प्रेमळ हसू तुझ्या ओठांवरील
गोड हसू नयन शब्दावरील
गुणगुणत करती हसू तुझ्या मनावरील 
राहू दे अशीच 
माझ्या आठवणींच्या 
सुगंधी लहरी होऊनी 
गोड चॉकलेटसारख्या चवीची
माझ्या आयुष्यडायरीवरती
Happy chocolate Day 

©️®️✍️Savita Tukaramji Lote
शीर्षक :- आयुष्यडायरीवरती **

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* On Life Diary **

 A nice smile on your face
 A loving smile on your face
 On the word sweet smile nayan
 A smile on your face
 Let it be
 Of my memories
 Being fragrant
 Tastes like sweet chocolate
 On my life diary
 Happy chocolate day
 

Ita avSavita Tukaramji Lote
 Title: - On Life Diary **

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*जीवन डायरी पर**

 आपके चेहरे पर एक अच्छी मुस्कान
 आपके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान
 मीठी मुस्कान शब्द पर नयन
 आपके चेहरे पर मुस्कान
 जाने भी दो
 मेरी यादों का
 सुगंधित होना
 मीठा चॉकलेट जैसा स्वाद
 मेरी जीवन डायरी पर
 हैप्पी चॉकलेट डे
 

✍️🏻©️®️सविता तुकारामजी लोटे
 शीर्षक:- जीवन डायरी पर **

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सोमवार, ७ फेब्रुवारी, २०२२

ओढ Happy propose day

       ** ओढ **

ओढ नाही कशाची ही 
मनाला ओढ फक्त तुझ्या  
प्रेमळ शब्दांची,
 होकार नकार 
यापेक्षाही नाते 
माझे - तुझे 
महत्वाचे .....
Happy propose day

©️®️✍️Savita Tukaramji Lote
शीर्षक :- ओढ

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प्रकाशाची प्रकाश झाली

            डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांच्या कार्याला मोलाची सोबत देणारी माऊली म्हणजे, 'रमाई'.  रमाई त्यांची सोबत मिळाली नसती तर बाबासाहेबांच्या कार्याला शून्यातून जग निर्माण करता आले नसते.
             त्यांच्या कार्याला कोटी कोटी प्रणाम. रमाई यांच्या संघर्षाला शब्दात मांडता येत नाही... तरी हा थोडाफार प्रयत्न मी केलेला आहे.

         ही कविता त्यांच्या संघर्षाला समर्पित करीत आहे. चुकल्यास माफी असावी.
          कविता स्वरचित व स्वलिखित आहे. आवडल्यास लाईक आणि शेअर करायला विसरू नका.

*** प्रकाशाची प्रकाश झाली ***

भिमाच्या संघर्ष लढाईला 
रमाईने सोबत दिली 
जळत्या दिव्यासारखी 
वात होऊन 
बाबासाहेबांच्या कार्याला 
प्रकाश दिला
अंधार असला तरी 
वाती खाली 
प्रकाशाची प्रकाश झाली 
रमाई माझी 
त्याग तुझा अफाट 
तुझ्या जीवनगाथेतील 
चांगुलपणा तोच होता 
तुझ्या आयुष्याच्या 
संघर्षगाथेचा... 
प्रणाम रमाई माता 
तुझ्या त्या संघर्ष जीवनाला 
प्रणाम रमाई माता 
तुझ्या त्या कोवळ्या 
बालमनातील संस्काराला 
प्रणाम रमाई माता 
आई झालीस तू 
दीनदलितांच्या विजय गाथेची 
दीनदलितांच्या विजयगाथेची.....

            ✍️🏻©️®️सविता तुकाराम लोटे 


©️®️✍️Savita Tukaramji Lote
शीर्षक :- प्रकाशाची प्रकाश झाली

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रविवार, ६ फेब्रुवारी, २०२२

एक प्रेमळ आठवण वेटिंग रूमची ...

एक प्रेमळ आठवण 
        वेटिंग रूमची ...❤!!


          काही आठवणी खूप सुंदर असतात. काही आठवणी शब्दांच्या सोबतीने सोबत येतात. काही आठवणी वर्षांनुवर्ष हृदयाच्या कप्प्यात साठून राहतात. शब्द नसले तरी त्या आठवणी घर करून आपले स्थान वर्षानुवर्ष जपून ठेवतात.

       कितीही पावसाळे गेले तरी त्या आठवणींचा संग्रह अगदी काल परवा झालेला प्रसंगा सारखीच राहते. ताजे टवटवीत आणि मनाला आपलेपणाची  जाणीव निर्माण करणारी..!!

  नयन माझे नयन त्याचे 
  भेट दोघांची एकाच क्षणाला 
  जसे नियतीने ठरवावे 
  क्षणात, मनात ..!!
  त्याच्या - माझ्या भेटीचा 
  मुहूर्त प्रेमाचा❤❤


        असेच काही झाले... ती आठवण म्हणजे मनाला खूप म्हणजे खूप ...खूपच आपली आहे. त्या आठवणीने आजही त्या क्षणाला अनुभवलेले सर्व आपलेपणा ...आपलेपणाची जाणीव ...आपलेपणाची मर्यादा आणि नकळत मनात वेगवेगळ्या शब्दांची गुंफण... खरच, ती आठवण म्हणजे माझ्या- त्याच्या आयुष्यातील सुंदर क्षण होते.

          त्याच्या माझ्या रेशीमबंधाची एक नवीन ओळख होती. खरच त्याच्या माझ्या आयुष्यातील एक नवीन पहाट होती. ती पहाट कधीच उगवलेली नाही. तरी त्याच्या मनात आजही त्या पहाटेच्या कल्पनेनेच मनात आजही ती पहाट, ते क्षण, त्या क्षणातील शब्द....हृदयाच्या कुठेतरी बंद कपाटात साचलेली असेल पण त्यावर कुठेही धुळे साचलेली नसेल..!!
         स्वच्छ आरशासारखी त्याच्या मनात आठवणीच्या स्वरुपात जागी असेल? जसे माझ्या मनात जागी आहे. 

सांजवेळेची ऊन धूसर कलल्यावर 
क्षणात सावलीची नवीन ओळख 
निराळेपणाने अनपेक्षित क्षणात 
नव्या ऊर्जेने 
आताही त्याच ऊर्जेने 
आठवणींच्या स्वरूपात 
अमर्यादितपणे 
शांत ....
पाण्यासारखी 
पाणीदार नयनांनी..!!


             माझ्या- त्याच्या त्या क्षणाला कधीही लोक साक्षी असले तरी मनातील चलबिचल फक्त आम्ही दोघे साक्षी होतो आणि सोबत आमच्यातील तो दुरावा, आमच्यातील दुरावलेला... नात्यातील ती ओळख. अनोळखी होती काही मिनिटापूर्वी ती व्यक्ती आता काही क्षणानंतर ती आपलीशी झाली. ओळखीची झाली. अनोळखी क्षण सारे ओळखीचे झाले त्याच्या - माझ्या अनोळख्या नजरेला आता ओळखीचा स्पर्श येऊ लागला. त्याच्या -माझ्या नयन भेटीला ओळखीच्या शब्दांची सोबत येऊ लागली. त्याच्या - माझ्या शब्दाविना संवादाला आता इतरांच्या नजरा चुकवीत शब्द येऊ लागले. नकळतच; आम्हा दोघांच्याही..!!


क्षणाक्षणाला फुललो आम्ही 
क्षणाक्षणाला बहरला आम्ही 
क्षणाक्षणाला हसलो आम्ही 
क्षणाक्षणाला जगलो आम्ही 
क्षणाक्षणाला अनुभवले प्रेम आम्ही 
क्षणाक्षणाला संस्कार जिंकलो आम्ही
त्याच्या - माझ्या प्रेमाच्या 
क्षण संस्कारांनी...!!


         खरंच, क्षण किती अनमोल असतात. सार्‍या आसमंतात आम्हा दोघांच्या त्या संवादाला सहमती दिली होती. त्या क्षणांचे वर्णन अवर्णनीय आहे. त्या क्षणाला आज पर्यंत शब्दात मी कधीही बांधले नाही... बांधू शकले नाही. शब्दांच्या धाग्यात गुंफले नाही कारण त्याच्या माझ्या अनोळख्या प्रेमाला फक्त आम्ही दोघे साक्षी होतो आणि सोबत तो हसर्‍या आसमंत.

         मनमुराद त्या क्षणांचा आस्वाद घेत. त्याच्या- माझ्या मनात प्रेमाचे अंकुर फुलवून हळूच गोड हळुवार नात्याची सुरुवात करीत होता. क्षण जात होते. तस तसे नाते फुलत होते. तस तसे मनात शब्दांची चाहूल नवनवीन वाटत होते.

        खूप काही बोलून गेलो.... खूप काही ठरवून गेलो..... खूप काही अनुभव घेऊन गेलो आणि खूप काही क्षण जगून गेलो..!! असे वाटत होते. त्याच्या- माझ्या त्या मूक संवादाला आता अधिकच व्याकूळ होत होता. माहित नाही का? पण मन रडवेली होत होते. त्याचे  - माझे तरीही , शांत भावविश्वात चेहऱ्यावरील भाव ठेवावे लागत होते.


फुलले अखेर हृदयात 
त्या भावना नवनवीन शब्दांच्या 
सोबतीने त्याच्या नयन 
शब्दांसोबत त्याच्या  - माझ्या 
मनात...❤!!

      जिंकला तो क्षण... जिंकला तो...! जिंकले त्याची नयन शब्द, त्याच्या भावना आणि त्याचे प्रेम. त्याच्या मनातील तळमळ पोचली माझ्या मनापर्यंत;तो जिंकला. तो हसरा आसमंत माझ्याकडे बघत बोलून गेला असे वाटून गेले जसे नाते फुलायचे तसेच ते फुलत जाते. त्याच्या माझ्या मनात नसले तरी क्षणाने फुलविले. कधीतरी इतरांच्या नयन शब्दांनी त्याला हवे असलेले, तो जिंकला... त्याचे प्रेम जिंकले... हा क्षण जिंकला. ही वेळ आपली नव्हती..? तर ती वेळ त्या नयन शब्दांची होती.


          खरच असे होत असेल का? या प्रश्नांसोबतच त्याचा माझ्या नयन संवाद चालूच होता. नकळत त्याच्याकडे जाणारे मन क्षणात आत कुठेतरी हरवत होते. कुठेतरी ओळखीची खूण जपत होते. कुठेतरी मन हरवूनही मनातील प्रश्न शांत स्तब्ध आणि नसल्यासारखे झाले होते.         

       खरच असे होत असेल का??? त्याच्या माझ्या मनात खरंच एकाच वेळी एकच भावना येत असेल का आणि त्याचे उत्तर प्रत्येक वेळी होकारार्थी आणि फक्त होकारार्थी येत होते. त्याच्याकडून त्या संवाद नसलेला शब्दाविना नयन भेटीतून..!!



हरले मी त्याच्या प्रेमासमोर 
हरवले मी मीच स्वतःला त्याच्या प्रेमासमोर 
हरले मी त्याच्या व्याकुळ प्रेमासमोर



        मन हरले,शब्द हरले, नयन शब्द हरले तरी ही संवाद चालूच अनोळखी व्यक्ती बरोबर ओळखीच्या नात्याने. 

                आज मनात राहून राहून त्या क्षणांच्या सर्व आठवणी जाग्या झाल्या मनाला कुठेतरी घेऊन गेल्या कुठेतरी नाही त्याच जागेवर त्याच्या टेबलावर.... मुंबई छत्रपती टर्मिनस, रेल्वे स्टेशनवर. गाड्यांचा आवाज... माणसांचा आवाज.... गर्दीची रेलचेल आणि क्षणात झालेली शांतता. परत गाड्यांचा आवाज आणि हा सर्व मध्ये चाललेला एक प्रेमळ संवाद ..!!

             आठवण खूप जुनी पण आता झाल्यासारखी काल-परवा होऊन गेलेले, तरी मनात त्या आठवणी बांधलेल्या आहे. त्याचा माझ्या संवादाविना प्रेमाला मी स्वतःही अंतिम क्षणापर्यंत पोहोचवु शकले नाही. तसे त्याचेही झाले असेल का?

             ते पहिले प्रेम होते. पहिल्या प्रेमाची चाहूल होती.पहिल्या प्रेमाची सुरुवात होती. मनाचा कोपरा न कोपरा कुणीतरी शब्द कोरले होते... गुंफले होते. नवीन नात्याची ओळख करून दिली होती. नवीन भावनेची ओळख करून दिली होती. नवीन नात्यासोबत नवीन संस्कारांची भाषा माझ्या मनाला नवीन धाग्यामध्ये गुंफली होती.

  
गुंफले मी त्याच्या प्रेमात 
गुंफले मी त्याच्या शब्दात 
गुंफले मी त्याच्या मनात 
गुंफले मी त्याच्या नजर भेटीत
गुंफले मी त्याच्या नयनात 
स्वतःला स्वतःच्या नकळत 
आणि ....💖
गुंतला तो माझ्या पाणीदार नयनात 
गुंतला तो माझ्या साधेपणात 
गुंतला तो माझ्या सौंदर्यविनाच 
असलेल्या चेहऱ्यात...🌹
 गुंतला तो माझ्या ओठांवरील हसूत 
गुंतला तो माझ्या नयनशब्दात 
त्याच्याही नकळत 
माझ्यासारखाच 
नवीन नात्यात..❤❤....!!



             हा संवाद खूप वेळ चालू होता. जस जसा वेळ जात होता; तस तशी मनात हळूच भीतीने आपले साम्राज्य स्थापित केले होते. आतापर्यंत हसणारे डोळे अश्रूंनी भरले होते. त्याच्या माझ्या दोघांचाही नजरा आता शून्यवत होत चालल्या होत्या. आता संवाद निरोपाचा असावा असे वाटत होते.

        संवाद निरोपाचा चालू झाला. संवाद आता ताटातुटी चालू झाला. संवाद आता फक्त विरहाचा चालू झाला. नयन ओले, नयनातील शब्द ओले, नयनातील संवादही ओला. आतापर्यंत खूप स्वप्ने रंगविणाऱ्या मनाने आता क्षणात हार मानली. नको दुरावा, नात्यात...., तरीपण त्या दुराव्याच्या कल्पनेनेच आता मन हलवून गेले.

           मन उदास होत होते. तरी त्याच्या सोबतीने मन अधिक ताकतवान होते. अलौकिक शक्ती मिळत होती. तो येण्याआधी मनात जी भीती होती त्या भीतीने आता परत जागा घेतली होती. पण आता त्या भेटीची जागा विरहाच्या दुःखाने घेतली होती. दुराव्याच्या त्या क्षणाला समोर कसे जायचे त्या क्षणासाठी मनाला शक्तिशाली करीत होतो, आम्ही दोघेही ..!!

          एकमेकांना हसत....परत भेटूया!!! वचनाने..! परत भेटू; याच शब्दाने. पण तो क्षण परत आलाच नाही. त्याच्या माझ्या आयुष्याच्या सुखद पानावर सुवर्ण अक्षरांनी लिहिण्यासाठी. त्याच्या माझा जीवन प्रवासात फक्त ते काही क्षण आले.


मनमोहक क्षणांना आता निरोप होता 
मनात प्रेमाची झालर होऊन 
त्यालाही कळले मलाही कळले 
नात्याचे रुपांतर आता प्रेमात 
झाले ...विरहाचे दुःख त्याचे माझे 
क्षणातच येऊन पाहणारे 
ओले नयन त्याचे माझे 
आता माझ्यासारखेच


               या आठवणीला खूप दिवस झाले 
...नाही आठवण म्हणता येणार नाही. ते तर प्रेम होते. त्याने दिलेले मला.... मी दिलेले त्याला.... क्षण आपले होते.... क्षण माझे त्याचे होते. क्षण आम्हा दोघांचे होते!! क्षण आमच्या नयनांचे.... क्षण माझा शब्द नयनांचे.... प्रतिसाद आम्ही दोघांनी तिला एकाच क्षणाला.... एका शब्दात.... व्याकुळ नयन भेटीने ... नयन संवादाने.

          रेल्वे स्टेशन वर आता गाड्यांचा आवाज येत होता. ही गाडी आता काही मिनिटात स्टेशनला येईल. हे सतत सांगितले जात होते. तस तसे मन अधिकच व्याकूळ होत होते. वेटिंग रूम डायरीवर नाव गाव पत्ता नंबर लिहीले जात होता.आता बाहेर जावे लागणार होते. आता त्याने आपली माहिती लिहिली माझ्या अधिकच अगदी गडबडीने माझ्यासमोर येऊन लिहिले. 

      त्याने माझ्याकडे पाहिले, मित्राला सांगू लागला ...मला ऐकू येईल त्या आवाजात पण मी मात्र न समजण्याच्या भूमिकेत. मीही माझी माहिती लिहिली... पण अर्धवटच.कारण माहीत होते तो क्षण विरहाचा होता. तो क्षण त्या क्षणापुरता मर्यादित होता तो क्षण आपला असला तरी तो आपला आयुष्यात न येणाऱ्या क्षणामधील एक होत्या.

         तो क्षण आपला असला तरी आपल्या आयुष्यात न येणाऱ्या क्षणामधील एक होता.

विरह सुखाचे विरह व्याकुळतेचे 
विरह माझ्या प्रेमाचा 
त्याच्या माझ्या प्रेमळ क्षणांचा


       ...... शब्दही कमी पडतात त्यावेळेला शब्दात बांधण्यासाठी. आजही मनात त्याच भावना जाग्या होतात त्या आठवणीने मन परत इतकेच त्रास करून घेते स्वतःला.... या त्रासाला फक्त तोच जबाबदार नाही तर नयन भेट दोघांची हि झाली होती.



एकटाच प्रवास कसा असेल 
जेव्हा नजर एक झाली तेव्हा 
तू ही हसली होतीस की, 
मनसोक्त खळखळून 
मनातल्या मनात
एकमेकांच्या नजरेतील 
संवादासोबत..
 विरहाचे दुःख माझेच का?
 दोष फक्त मलाच का? 
मग एकटाच प्रवास कसा, 
माझा प्रेम 
भाषेच्या 
विरहाचा..!!


           रेल्वे स्टेशनच्या हॉल मधून बाहेर पडताना झालेला तो स्पर्श हळूच बोलून गेला. नको ना!! हा दुरावा ..!!त्याच्या हातातील बॅग बघत बोलून गेली.. sorry ... हळू! लागेल. पण त्याचे लक्ष नव्हतेच जणू. तो फक्त बोलत होता शब्दशिवाय संवाद साधत होता.सांग ना... आणि अशा अनेक प्रश्नांची साखळी माझ्यासारखीच त्याच्याही जवळ होती.

          माझ्या सारखेच प्रेम फुलेल का? सांग ना ..!!माझे प्रेम तुला मान्य आहे का. तो क्षणात बोलून गेला. माझ्या हातातील बॅग हळूच बाजूला करीत बोलून गेला; Miss you... Savita आश्चर्याचा धक्का मला त्यावेळी बसला नाही जसे मी त्याचे नाव गाव पत्ता नंबर पाहिला असेल तसाच त्यानेही. 

      मी मौन होती. तो बोलत होता आता ही एक सारखा डोळ्यांकडे बघून ओठांची हालचाल चालूच होते विरहाचे दुःख सहन होत नव्हते व्याकूळ मन अधिक व्याकुळ होत होते मनाला समजावे कि त्याच्या मनाला कळत नव्हते मी मी समजावले माझ्या त्याच्या मनाला शब्दाने एकाच...sir ,प्लीज..!! तरीही तो त्याच भूमिकेत. मी ही त्याच भूमिकेतच..!!  चल, ना!! गाडी आयेगी ना ..!!या वाक्याने.भानावर आलेलो आम्ही लक्षात आलेच नाही किती वेळ निघून गेला तो. मित्राच्या आवाजाने भानावर आलेलो आम्ही. 

         आता वेटिंग रूम मध्ये नव्हतोच. आता दूर गेलो. आता वेटिंग रूम नव्हती... आता नयन भेट होती फक्त दुरूनच. काही अंतराने. पण तरी संवाद चालूच होता. पुस्तकातून डोके वर करून वाचण्याच्या अभिनयाद्वारे... वाचण्याच्या बहाण्याने..!!

बहाण्या नव्हता तो 
प्रेम होते Miss you नव्हते ते
love you  होते ते 
तरी Miss you.. Love you होता होता क्षणाक्षणाला .... 
व्याकुळ शब्द होते ते  

            मन miss you करीत होते. त्याच्या मनाला.... त्याच्या संवादाला. आतापर्यंत चाललेला संवाद आता काही अंतराच्या दुराव्याने चालला होता. नाही तो त्या क्षण सोबत त्याच्या माझ्या मनात चालला होता. हे सर्व तिसरा कोणा व्यक्तीच्या लक्षात आले.तो व्यक्ती म्हणजे त्याचा 'मित्र,' त्याला कळत नव्हते; नेमक काय चालू आहे? तो आमच्या दोघांकडे ही पाहू लागला. काय झाले? उत्तर नव्हते... त्याच्याकडे. उत्तर नव्हते माझ्याकडे.

           आमच्यातील संवाद आता त्यालाही कळला होता. आमच्यातील प्रेम आता त्यालाही समजले होते. प्रेम लपविता येत नाही असे म्हणतात तसेच झाले. नाही, संवाद नवीन पद्धतीने चालू झाला. तोही त्या संवादाचा भाग होत होता. पण समजूतदार व्यक्तीसारखा.


           नको मानेने खुणावत होता. त्याला मला पण मनाला ती दिसतच नव्हती. हा संवाद खूप वेळ चालू होता. गाडी येण्याची चाहूल लागली मनात अधिकच बेचैनी सुरू झाली.नको असलेला क्षण अगदी जवळ येत होता मनात फक्त प्रश्नांची आणि शब्दही न सुचावे अशी काही चालू होते. आम्ही मनाला समजू शकत नव्हतो. फक्त नयन भाषा चालू होती. त्याची तळमळ कळत होते. पण काहीही करू शकत नव्हते. तो मित्राला खुणावत होता. 
          आपण नंतरच्या गाडीने जाऊन. पण वेळ नव्हती. आणि येऊ नये ती वेळ आली. मन जड झाले... पाय जड झाले... अश्रूंचा बांधा सुटला... त्याच्या ही आणि माझ्याही.. लक्ष नव्हतेच कुणाकडे ना सामानाकडे. डोळे फक्त तो क्षण जपून ठेवण्याकडे चालला होता.

मनात प्रेम फुलविण्यासाठी 
आणि त्या 💓💓💖💖भावना मनाला 
समजून सांगण्यासाठी परत 
प्रेमळ मुक संवाद घेऊन 
माझ्या आयुष्यात..!!


          तुझ्या माझ्या प्रेमाला नजर लागली, वेळेची. मी ही हरले आणि तू ही हरला. विरहाचे दुःख दोघांचाही पदरी पडले. हिशोब मांडला तर आपल्याला कळेल किती वेळा या विरहाच्या दुःखात अशी कितीतरी आनंदी क्षण हरवून बसलो आहोत. पण त्या वेळेचा हिशोब मांडला तर कितीतरी क्षण जगून घेतले आहे.

          त्याच्या माझ्या समजूतदारपणाची किंमत होती. आम्हा दोघांना पण भावनिक नात्यांना किंमत नसते. हे आज यावेळेला कळते. त्याच्या माझ्यातील तो क्षणभराचा प्रेम संवाद थांबविता आला असता तर पण  नियतीने ठरविलेला होता तो जणू.

            भावनिक नात्यांची गुंतवणूक करून मनाला ती निभवावी लागली. तो क्षण विसरता न आल्यामुळे जणू नव्या सुखाच्या शोधात. आम्ही दुःखाचे चावट सोबत घेत आहोत. हे त्या प्रेमळ संवादात कळलेच नाही. उलट चुकत गेले... एकमेकांच्या मूक संवादाला प्रतिसाद देऊ.

             प्रेम विरहाच्या आगीत फक्त स्वतःला जळवत ठेवायचे. आता वाटत असेच त्याच्यासोबत सुद्धा होत असेल की सर्व काही वेळेनुसार विसरला असेल माहित नाही. पण, मी नाही विसरले ....पहिले प्रेम, पहिली भावना, पहिले उमलणे आणि पहिले संवाद तेही मुक. पहिल्या विरहाचे ते क्षण ताटातुटीचे ते क्षण ती वेटिंग रूम आणि ते स्टेशन सर्व काही काल झाल्यासारखेच..!!

 
विरह नव्हताच तो 
होता नवीन वळणावरील 
नवीन वळण जीवन गाथेचे 
नवीन प्रवास सुरू झाला 
नवीन आयुष्याचा 
त्याच्या माझ्या प्रेमळ प्रेम 
आठवणीचा पण ताटातुटीचा 
तरी हवाहवासा वाटणारा


          नको भेटू कुठेही, पण मनात राहा. शेवटच्या टप्प्यापर्यंत. तसाच... प्रेमळ नवीन भेटीसाठी!! कुठेतरी ,संवाद मूक असला तरी चालेल. पण भेट एकदा;मनाला फुलविण्यासाठी. माझ्या आठवणीतील प्रेमळ मित्र ....!!

          ✍️🏻©️®️सविता तुकाराम लोटे 

©️®️✍️Savita Tukaramji Lote
शीर्षक :- एक प्रेमळ आठवण 
        वेटिंग रूमची ...

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गुरुवार, ३ फेब्रुवारी, २०२२

** डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आणि धर्मांतंर ** ** Dr. Babasaheb Ambedkar and Conversion **

     **  डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आणि                                         धर्मांतंर  **

  *** Dr. Babasaheb Ambedkar and Conversion **
     
** Dr. Babasaheb Ambedkar and Conversion **

            Many great men have been born in India.  With his commitment, many people in India created a wave of change in the society through exemplary guidance and innovative initiatives.  Babasaheb Ambedkar will have to pay.

        Because Babasaheb made the biggest change in India without any bloody revolution just on the strength of education.  A society that was considered inferior to animals.  He had the right to live.  But he could not consume any of the resources he needed to survive.  Babasaheb gave the religion of humanity to such a poor community and the biggest conversion took place in India.



 Dr. Babasaheb Ambedkar was the first law minister of independent India, the architect of the Indian constitution, the first great man to awaken the identity of the untouchable community, the jurist, the eminent speaker and many more.  Babasaheb Ambedkar has a personality.


 October 14, 1956 Dr. Babasaheb Ambedkar carried out the largest conversion in history.  Restored the Buddhist Dhamma in India.  A class of people who were considered untouchables were converted, but more importantly, the abolition of untouchability imposed on seven crore untouchables.
 Dr. Babasaheb Ambedkar was an atheist.  Yet he had hope and faith in religion.  He always looked at religion in a positive light.  Because when problems arise in front of a person and he is surrounded on all sides, then one goes to spirituality for mental satisfaction.  The same power gives strength to live in that time.

 While studying the Indian social system, one thing that Prakash realized was the "cleverness system", Babasaheb studied various religions before his conversion, and one of the things that Prakash realized was that in Hinduism personal selfishness was given more importance.


 Dr.  Babasaheb says, "A religion that satisfies my conscience, will convince my mind, will take my seven crore brothers in the name of conversion and take them safely to Paltira and make their lives stable."  This belief was found only in the Buddhist Dhamma.

 Dr.  Explaining the concept of conversion, Babasaheb Ambedkar said, "Untouchables are not treated sympathetically in Hinduism. Religion which discriminates between people by rewarding caste system. Religion which does not have freedom, equality and brotherhood.


Babasaheb's question to Hindu society was, which religion does not allow untouchables to go to the temple?  Can't get drinking water?  Does not allow learning?  Considering the shadow of untouchables to be ugly, why should untouchables live in Hinduism?

  Dr.  Babasaheb Ambedkar was not anti-Hindu.  So more attention should be paid to social reform.  In this role, he presented his thoughts to the society.  He felt that religion should be in the context of social utility.  He had special study of Hindu, Buddhist, Muslim and Christian religions.

 The development of Hinduism is Vedic religion, Brahmanism and Hinduism.  Jainism and Buddhism emerged in this country at this stage of Brahmanism.  The reason for this is that animal sacrifice was practiced in Brahmanical religion for personal salvation.  But when animals were useful for agriculture, these two religions emerged as an alternative to Brahmanical religion to stop violence and slaughter of animals.

 .
 According to Babasaheb, "The main scripture according to which Hinduism operates is Manusmriti. It is a mixture of religion, ethics and law at the same time.

 There is ethics with it. Because it also states duties ... there is also benefit.  Because it also says punishment. "Not so in the Buddhist Dhamma. Because the main function of Buddhism is to liberate the poor people who are suffering.
 Lord Gautama Buddha, while explaining Buddhism to his disciples, says, "Bahujan Hitaya, Bahujan Sukhaya;  It is interpreted in such a way that it is for the benefit of the masses to love them for happiness.  This religion should not only be accepted by human beings, but also by the gods.



There is no discrimination in Buddhism.  There is equality everywhere.  In Buddhism, God does not think of the soul.  How a man should treat a man.  It seems to have been considered.  The only true religion in life is Buddhism which is the only religion that can bring good to human beings.

 Explaining the main role of Buddhism, Buddhists say, "Religion is needed even by the poor. Victims want religion. The poor man lives in hope. He is the source of hope. If hope is lost, how can it be? Religion gives hope to the victims. Don't be afraid.  He clings to religion, "says Babasaheb.

 According to Babasaheb, the purpose of religion should be to explain policies, but this was not the case in Hinduism.  Babasaheb says society will not be united without destroying social kid.  Babasaheb Ambedkar was a great devotee of Buddhism and was a great Bodhisattva. He was also a philosophical scholar of Buddhism. He was a revivalist.


Dr.  Babasaheb Ambedkar wrote in 1935, "Even if I was born a Hindu, I will not die a Hindu."  He made the announcement and completed it on October 14, 1956.

 Babasaheb, along with his followers, embraced Buddhism and gave the path of humanitarian Dhamma to his poor untouchable society.  Brought them into the cycle of development.  Dr.  Babasaheb's personality was versatile.  They have perfect knowledge and information in every field.  He embraced Buddhism and gave a new message to life.
 Dr.  Babasaheb says, "Why did I accept Buddhism?" "Buddhism is the only religion that will accept a society awakened by science. Without it, the society will perish. I argued that Buddhism is the only religion in the modern world which  Can save "so I embraced Buddhism.
 
Dr. Babasaheb says that Buddhism is optimistic and humanistic.

 My class is poor, their progress can only be in Buddhism.  Because it runs on the principle of Bahujan Hitaya Bahujan Sukhaya.  So it has been converted.  Dr. Babasaheb Ambedkar's vision was clear.  They knew where to take their community.  His plan was ready with them.
 Babasaheb adopted the best philosophy for their development so that they could live as human beings.  The principle that runs on the optimistic words Bahujan Hitaya Bahujan Sukhaya.  Indeed, Babasaheb's vision was supernatural.  Due to Babasaheb, we came out of a religion where there was only slavery.  Where only exploitation takes place.  We want to place the Dhamma philosophy given by Babasaheb in our personality and in our lifestyle.  Only then will we live as human beings .. !!

 So Babasaheb, Therefore, every generation should accept Babasaheb's concept of conversion.  Because we don't want to live in slavery again.  The mud from which Babasaheb brought us out. We don't want that mud in our life anymore.  So Dr.  Babasaheb Ambedkar's concept of conversion should be explained by everyone on their mental level ...

  In the end one has to say,
 The message of humanity to the   world
 Given by humanity and
 Buddhism is the whole
 Development saga of humanity ...... !!!

               ✍️©️®️Savita Tukaram Lote



 ✍️©️®️Savita Tukaramji Lote
     Title: -
 ** Dr. Babasaheb Ambedkar and                             Conversion **
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** डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आणि धर्मांतंर **

     **  डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आणि                                         धर्मांतंर  **



           भारतामध्ये अनेक महापुरुषांनी जन्म घेतला आहे.त्यांनी देशासाठी आणि समाजासाठी अहोरात्र कार्य करुन  आर्थिक,धार्मिक, शैक्षणिक,सामाजिक बांधिलकी जपत राष्ट्रनिष्ठा जपली. त्यांनी बांधिलकी जपत भारतामध्ये अनेक देशवासीयांनी आदर्श मार्गदर्शन आणि नवनवीन उपक्रमाद्वारे समाजामध्ये परिवर्तनाची लाट निर्माण केली त्या परिवर्तनाच्या लाटेमध्ये सर्व प्रथम स्थान डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांना द्यावे लागेल.

           कारण बाबासाहेबांनी कोणतीही रक्तरंजित क्रांती न करता फक्त शिक्षणाच्या जोरावर भारतामध्ये सर्वात मोठे परिवर्तन केले. जो समाज पशूपेक्षाही खालच्या दर्जाचा मानला जात होता. त्याला जगण्याचा अधिकार होता. पण जगण्यासाठी लागणारा कोणत्या साधनसंपत्तीचा उपभोग घेऊ शकत नव्हता. अशा दीनदलित समाजाला बाबासाहेबांनी मानवतेचा धर्म दिला आणि भारतात सर्वात मोठे धर्मांतर झाले.

        डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर हे स्वतंत्र भारताचे पहिले कायदेमंत्री, भारतीय संविधानाचे शिल्पकार, अस्पृश्य समाजाची अस्मिता जागविणारे पहिले महामानव, कायदेपंडित, प्रख्यात वक्ता आणि अशा कितीतरी विशेषणाने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांचे व्यक्तिमत्त्व आहे.

 
          14 ऑक्टोंबर 1956  डॉ बाबासाहेब आंबेडकरांनी इतिहासातील हे सर्वात मोठे धर्मांतर घडवून आणले. भारतातील बौद्ध धम्माची पुन:स्थापना केले. अस्पृश्य समजल्या जाणाऱ्या एक समाज वर्गाचे धर्मांतर झाले परंतु त्याहीपेक्षा मोठी गोष्ट म्हणजे सात कोटी अस्पृश्यांवर लादल्या गेलेल्या अस्पृश्यतेच्या निवारणाचा.


      डॉ बाबासाहेब आंबेडकर निरीश्वरवादी होते. तरी त्यांना धर्माबद्दल आशा आणि आस्था होती. त्यांनी नेहमी धर्माकडे सकारात्मक दृष्टीने पाहिले. कारण ज्या वेळी व्यक्तीसमोर समस्या निर्माण होतात आणि चारही बाजूने तो वेढला जातो त्यात त्यावेळी एक मानसिक समाधानासाठी अध्यात्माकडे पाहिजे जाते.  तीच शक्ती त्या वेळी जगण्यासाठी सामर्थ्य देते.

           भारतीय समाज व्यवस्थेचा अभ्यास करताना, एक गोष्ट प्रकर्षाने जाणवते ती म्हणजे "चातुर्यवर्णव्यवस्था", बाबासाहेबांनी धर्मांतर करण्याआधी विविध धर्मांचा अभ्यास केला आणि त्यात प्रकर्षाने एक त्यांना जाणवली ती म्हणजे हिंदू धर्मामध्ये व्यक्तिगत स्वार्थाला अधिक महत्व दिले जात होते.

 
            डॉ. बाबासाहेब म्हणतात," जो धर्म माझ्या सदसदविवेकबुद्धीला पटेल, माझ्या मनाची पूर्ण खात्री करून देईल त्यावेळी मी करून ठेवलेल्या धर्मांतराच्या नावेत माझ्या सात कोटी बांधवांना बसवून त्यांना अगदी सुरक्षित रित्या पैलतीराला घेऊन जाईल आणि त्यांचे जीवन स्थिरस्थावर करीन." हा विश्वास फक्त त्यांना बौद्ध धम्मात मिळाला. 

      डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनी धर्मांतराची संकल्पना स्पष्ट करताना म्हणतात,"हिंदू धर्मात अस्पृश्यांना सहानुभूतीची वागणूक मिळत नाही.  जो धर्म जातीव्यवस्थेचा पुरस्कार करून माणसामाणसात भेद करतो. ज्या धर्मात स्वातंत्र्य समता बंधुता नाही. त्या धर्मात राहून अस्पृश्यांचा उद्धार होणार नाही म्हणून त्यांनी धर्मांतर केले पाहिजे". 

      बाबासाहेबांचे हिंदू धर्म समाजव्यवस्थेला असा सवाल होता की, जो धर्म अस्पृश्यांना देवळात जाऊ देत नाही?  प्यायला पाणी मिळू देत नाही? विद्या ग्रहण करू देत नाही? अस्पृश्यांच्या सावलीचा विटाळ मानतो, त्या हिंदू धर्मात अस्पृश्यांनी कशासाठी राहावयाचे?

         डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर हिंदू धर्म विरोधक नव्हते. तर सामाजिक सुधारणेकडे अधिक लक्ष जावे. या भूमिकेतून त्यांनी आपले विचार समाजापुढे मांडले. धर्माची सामाजिक उपयुक्ततेच्या संदर्भात झाले पाहिजे असे त्यांना वाटत होते. त्यांनी हिंदू,बौद्ध,मुस्लिम,ख्रिश्चन धर्माचा त्यांचा विशेष अभ्यास होता.

        हिंदू धर्माचा विकास हा वैदिक धर्म ब्राह्मण धर्म व हिंदू धर्म असा झालेला आहे. ब्राह्मण धर्म या टप्प्यावरच या देशात जैन व बौद्ध धर्म उदयास आले. याचे कारण म्हणजे व्यक्तिगत मोक्ष मिळविण्यासाठी ब्राह्मण धर्मात पशु बळी दिला जायचा. पण पशु हे शेतीसाठी उपयुक्त असायचे तेव्हा हिंसा व पशुहत्या थांबून शेती जगण्यासाठी ब्राह्मणी धर्माला पर्याय म्हणून हे दोन धर्म उदयास आले.

         बाबासाहेबांच्या मते,"हिंदू धर्म ज्या मुख्य ग्रंथानुसार चालतो तो म्हणजे मनुस्मृती. हा ग्रंथ एकाच वेळी धर्म नीती व कायदा यांचे मिश्रण आहे. कारण धर्मग्रंथ या अर्थाने त्यात जाती व वर्णव्यवस्था सांगितलेले आहे व कायदाही आहे. कारण त्यात शिक्षाही सांगितलेली आहे. 

       सोबत नीतिशास्त्र आहे.कारण त्यात कर्तव्येही सांगितलेली आहे... फायदाही आहे. कारण त्यात शिक्षाही सांगितलेली आहे."  तसे बौद्ध धम्मात नाही. कारण बौद्ध धर्माचे मुख्य कार्य दुःखाने पिडलेल्या त्या गरीब माणसांना मुक्त करणे हे आहे.
           भगवान गौतम बुद्धाने आपल्या शिष्यांना बौद्ध धर्माची व्याख्या करताना म्हणतात,"बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय; लोकनुकंपाय, हिताय सुखाय, देवमनुस्सानम, आदीकल्याणम , अंतिकल्याणम". अशा पद्धतीने व्याख्या केली आहे बहुजन लोकांच्या हिताकरिता सुखाकरिता त्यांच्यावर प्रेम करण्याकरिता आहे. हा धर्म नुसता माणसांनी स्वीकारुन चालणार नाही, तर देवतांनी सुद्धा त्याचा स्वीकार करायला पाहिजे.

            बुद्ध धर्मात भेदभाव नाही. सर्वत्र समानता आहे. बुद्ध धर्मात देव आत्मा यांचा विचार केलेला नसतो. माणसाने माणसाची कशी प्रकारे वागले पाहिजे. याचा विचार केलेला आढळतो. जो धर्म माणसाला कल्याण साधायला कारणीभूत होईल तोच खरा धर्म बुद्ध धर्म जीवनात अत्यंत आवश्यकता आहे.

         बौद्ध धम्मा घेण्यामागची मुख्य भूमिका सांगताना म्हणतात ,"धर्माची आवश्यकता गरिबांनाही पीडित लोकांना धर्म हवा असतं गरीब मनुष्य जगतो तो आशेवर जीवनाचे मूळ आशेत आहे आशाच नष्ट झाली तर कसे होईल धर्म आशावादी बनवितो पिडीतांना संदेश देतो काय घाबरू नकोस तुझे जीवन आशादायी होईल म्हणून गरीब पीडित मनुष्य धर्माला चिटकून राहतो."असे बाबासाहेब म्हणतात.

          बाबासाहेबांच्या मते धर्माचं प्रयोजन नीती सांगणं असावे पण हिंदू धर्मात तसे नव्हते डॉ. बाबासाहेब म्हणतात सामाजिक किड नष्ट केल्याशिवाय समाज एकसंघ होणार नाही डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर बौद्ध धर्माचे थोर उपासक व प्रवर्तन महान बोधिसत्व होते तसेच बौद्ध धर्माचे तत्वज्ञान विद्वान लेखक होते पुनरुत्थानक होते येथे काय भारतातून लुप्त झालेला बौद्ध धर्म बाबासाहेबांनी पुन्हा पुनर्जीवित केले भारतात सर्वात मोठे धर्मांतर करून..!!

         डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांनी 1935 साली," मी हिंदू म्हणून जन्माला आलो तरी हिंदू म्हणून मरणार नाही." अशी घोषणा केली आणि ती घोषणा त्यांनी 14 ऑक्टोबर 1956  साली पूर्ण करून दाखविली.

        बाबासाहेबांनी आपल्या अनुयायांना सोबत बौद्ध धम्म स्वीकारला आणि आपला दीनदलित अस्पृश्य समाजाला त्यांनी मानवतावादी धम्माची पायवाट दिली. त्यांना विकासाच्या चक्रावर आणले. डॉ. बाबासाहेब यांचे व्यक्तिमत्त्व अष्टपैलू होते. त्यांना प्रत्येक क्षेत्रातील परिपूर्ण ज्ञान व माहिती होते. त्यांनी बौद्ध धर्माचा स्वीकार करून आयुष्याला नवीन संदेश दिला.
         डॉ. बाबासाहेब म्हणतात, मी बोद्ध धम्माच का स्वीकारला," विज्ञानाने जागृत झालेला समाज स्वीकारेल असा बुद्ध धर्म हा एकमेव धर्म आहे. त्याविना हा समाज नष्ट होईल. मी त्यात असे विवेचन केले होते की, या आधुनिक जगात बुद्ध धर्म हा असा एकच धर्म आहे. जो मानवजातीचे रक्षण करू शकते"  म्हणून मी बौद्ध धर्म स्वीकारला.


       डॉ बाबासाहेब म्हणतात बौद्ध धर्म आशावादी आणि मानवतावादी आहे बुद्धांनी सांगितलेले तत्वज्ञान व तत्व अजरामर आहे पण बौद्ध धम्म असा दावा करीत नाही म्हणूनच सर्वश्रेष्ठ आहे म्हणून मी हा धर्म स्वीकारला.

          माझा वर्ग हा गोरगरीब आहे. त्यांची प्रगती ही फक्त बौद्ध धर्मातच होऊ शकते कारण बहुजन हिताय बहुजन सुखाय या तत्वावर तो चालतो. म्हणून हे धर्मांतर केलेले आहे. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांची दूरदृष्टी स्पष्ट होती. त्यांना त्यांच्या समाजाला कुठे पोहोचवायचे आहे हे माहीत होते.
        त्याचा आराखडा त्यांच्याजवळ तयार होता. त्यांच्या विकासासाठी त्यांना मानव म्हणून जगता यावे म्हणून बाबासाहेबांनी सर्वश्रेष्ठ तत्त्वज्ञानाचा स्वीकार केला. जे तत्व बहुजन हिताय बहुजन सुखाय या आशावादी शब्दांवर चालतो.
         खरच बाबासाहेबांचे दूरदृष्टी अलौकिक होती. बाबासाहेबामुळे आम्ही एका अशा धर्मातून बाहेर पडलो, जिथे फक्त गुलामगिरी होती. जिथे फक्त शोषण होते. आपल्याला बाबासाहेबांनी दिलेल्या धम्म तत्वज्ञानाला आपल्या व्यक्तिमत्त्वामध्ये आपल्या जीवनशैलीमध्ये स्थान द्यायचे आहे. तरच आपण माणूस म्हणून जगु म्हणून..!!       

       बाबासाहेबांची धर्मांतराची संकल्पना प्रत्येक पिढीने स्वीकारली पाहिजे. कारण आपल्याला परत गुलामगिरीचे जगणे नको आहे. ज्या गुलामगिरीतून बाबासाहेबांनी आपल्याला बाहेर काढले ; तो चिखल  आता आपल्या आयुष्यात परत नको आहे. म्हणून डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांची धर्मांतराची संकल्पना प्रत्येकाने आपल्या मानसिक स्तरावर स्पष्ट केलेली बरी...!!!

शेवटी एकच म्हणावे लागेल,
        जगी मानवतेचा संदेश 
        मानवतेने दिला आणि 
         बुद्धतत्वज्ञान म्हणजे संपुर्ण 
         विकास गाथा मानवतेची ......!!! 

                  ✍️©️®️सविता तुकाराम लोटे 



           ©️®️✍️Savita Tukaramji Lote
शीर्षक :- 
         **  डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आणि                                         धर्मांतंर  **
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     **  डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आणि                                         धर्मांतंर  **

  *** Dr. Babasaheb Ambedkar and Conversion **
     
** Dr. Babasaheb Ambedkar and Conversion **

            Many great men have been born in India.  With his commitment, many people in India created a wave of change in the society through exemplary guidance and innovative initiatives.  Babasaheb Ambedkar will have to pay.

        Because Babasaheb made the biggest change in India without any bloody revolution just on the strength of education.  A society that was considered inferior to animals.  He had the right to live.  But he could not consume any of the resources he needed to survive.  Babasaheb gave the religion of humanity to such a poor community and the biggest conversion took place in India.



 Dr. Babasaheb Ambedkar was the first law minister of independent India, the architect of the Indian constitution, the first great man to awaken the identity of the untouchable community, the jurist, the eminent speaker and many more.  Babasaheb Ambedkar has a personality.


 October 14, 1956 Dr. Babasaheb Ambedkar carried out the largest conversion in history.  Restored the Buddhist Dhamma in India.  A class of people who were considered untouchables were converted, but more importantly, the abolition of untouchability imposed on seven crore untouchables.

 Dr. Babasaheb Ambedkar was an atheist.  Yet he had hope and faith in religion.  He always looked at religion in a positive light.  Because when problems arise in front of a person and he is surrounded on all sides, then one goes to spirituality for mental satisfaction.  The same power gives strength to live in that time.

 While studying the Indian social system, one thing that Prakash realized was the "cleverness system", Babasaheb studied various religions before his conversion, and one of the things that Prakash realized was that in Hinduism personal selfishness was given more importance.


 Dr.  Babasaheb says, "A religion that satisfies my conscience, will convince my mind, will take my seven crore brothers in the name of conversion and take them safely to Paltira and make their lives stable."  This belief was found only in the Buddhist Dhamma.

 Dr.  Explaining the concept of conversion, Babasaheb Ambedkar said, "Untouchables are not treated sympathetically in Hinduism. Religion which discriminates between people by rewarding caste system. Religion which does not have freedom, equality and brotherhood.


Babasaheb's question to Hindu society was, which religion does not allow untouchables to go to the temple?  Can't get drinking water?  Does not allow learning?  Considering the shadow of untouchables to be ugly, why should untouchables live in Hinduism?

  Dr.  Babasaheb Ambedkar was not anti-Hindu.  So more attention should be paid to social reform.  In this role, he presented his thoughts to the society.  He felt that religion should be in the context of social utility.  He had special study of Hindu, Buddhist, Muslim and Christian religions.

 The development of Hinduism is Vedic religion, Brahmanism and Hinduism.  Jainism and Buddhism emerged in this country at this stage of Brahmanism.  The reason for this is that animal sacrifice was practiced in Brahmanical religion for personal salvation.  But when animals were useful for agriculture, these two religions emerged as an alternative to Brahmanical religion to stop violence and slaughter of animals.

 .
 According to Babasaheb, "The main scripture according to which Hinduism operates is Manusmriti. It is a mixture of religion, ethics and law at the same time.

 There is ethics with it. Because it also states duties ... there is also benefit.  Because it also says punishment. "Not so in the Buddhist Dhamma. Because the main function of Buddhism is to liberate the poor people who are suffering.

 Lord Gautama Buddha, while explaining Buddhism to his disciples, says, "Bahujan Hitaya, Bahujan Sukhaya;  It is interpreted in such a way that it is for the benefit of the masses to love them for happiness.  This religion should not only be accepted by human beings, but also by the gods.



There is no discrimination in Buddhism.  There is equality everywhere.  In Buddhism, God does not think of the soul.  How a man should treat a man.  It seems to have been considered.  The only true religion in life is Buddhism which is the only religion that can bring good to human beings.

 Explaining the main role of Buddhism, Buddhists say, "Religion is needed even by the poor. Victims want religion. The poor man lives in hope. He is the source of hope. If hope is lost, how can it be? Religion gives hope to the victims. Don't be afraid.  He clings to religion, "says Babasaheb.

 According to Babasaheb, the purpose of religion should be to explain policies, but this was not the case in Hinduism.  Babasaheb says society will not be united without destroying social kid.  Babasaheb Ambedkar was a great devotee of Buddhism and was a great Bodhisattva. He was also a philosophical scholar of Buddhism. He was a revivalist.


Dr.  Babasaheb Ambedkar wrote in 1935, "Even if I was born a Hindu, I will not die a Hindu."  He made the announcement and completed it on October 14, 1956.

 Babasaheb, along with his followers, embraced Buddhism and gave the path of humanitarian Dhamma to his poor untouchable society.  Brought them into the cycle of development.  Dr.  Babasaheb's personality was versatile.  They have perfect knowledge and information in every field.  He embraced Buddhism and gave a new message to life.
 Dr.  Babasaheb says, "Why did I accept Buddhism?" "Buddhism is the only religion that will accept a society awakened by science. Without it, the society will perish. I argued that Buddhism is the only religion in the modern world which  Can save "so I embraced Buddhism.

 
Dr. Babasaheb says that Buddhism is optimistic and humanistic.

 My class is poor, their progress can only be in Buddhism.  Because it runs on the principle of Bahujan Hitaya Bahujan Sukhaya.  So it has been converted.  Dr. Babasaheb Ambedkar's vision was clear.  They knew where to take their community.  His plan was ready with them.
 Babasaheb adopted the best philosophy for their development so that they could live as human beings.  The principle that runs on the optimistic words Bahujan Hitaya Bahujan Sukhaya.  Indeed, Babasaheb's vision was supernatural.  Due to Babasaheb, we came out of a religion where there was only slavery.  Where only exploitation takes place.  We want to place the Dhamma philosophy given by Babasaheb in our personality and in our lifestyle.  Only then will we live as human beings .. !!

 So Babasaheb, Therefore, every generation should accept Babasaheb's concept of conversion.  Because we don't want to live in slavery again.  The mud from which Babasaheb brought us out. We don't want that mud in our life anymore.  So Dr.  Babasaheb Ambedkar's concept of conversion should be explained by everyone on their mental level ...

  In the end one has to say,
 The message of humanity to the   world
 Given by humanity and
 Buddhism is the whole
 Development saga of humanity ...... !!!

               ✍️©️®️Savita Tukaram Lote



 ✍️©️®️Savita Tukaramji Lote
     Title: -
 ** Dr. Babasaheb Ambedkar and                             Conversion **
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बुधवार, २ फेब्रुवारी, २०२२

चारोळी संग्रह " बळीराजाच्या मनोभावनेतून „



चारोळी संग्रह
     " बळीराजाच्या मनोभावनेतून „

          शेतकरी म्हणजे अन्नदाता. काळा मातीत धान्य पिकवितो आणि संपूर्ण जगाचा उद्धार करतो. त्यांचे पालनपोषण करतो. पण लहरी निसर्ग चक्रामुळे आणि चुकीच्या उद्योजक पद्धतीमुळे शेतकऱ्यांना अनेक अडचणींना समोर जावे लागते. शेतकरी जगाचा पोषण कर्ता आहे शेतकरी संपला तर जगाचा हाहाकार माजेल. 
               शेतकरी अनेक संकटांना समोर जात आहे.   सरकारी पॅकेज देत असली तरी निसर्गाच्या लहरीपणामुळे शेतकरी भात दुःखाच्या छायेखाली वावरत आहे त्यामुळे होणाऱ्या आत्महत्या आणि सतत नापिकीमुळे येणारी गरीबी शेतकऱ्यांचे जीवन हलाखीचे होत आहे. 
                 या भावविश्वातून," बळीराजाच्या मनोभावनेतून" हा छोटासा चारोळीसंग्रह  लिहिण्यात आलेले आहे. 
         
                  ईडा पिडा टळू दे, बळीराजाचे राज्य येऊ दे... सर्व जगाचा उद्धार होईल. उरल्या-सुरल्या आयुष्याला सुखाचे दिवस येऊ दे. सकाळचा सूर्य बळीराजाचा असेल.
       ह चारोळा स्वलिखित आणि स्वरचित आहे. आवडल्यास लाईक आणि शेअर करायला विसरू नेका.
       
    


                 शेतकरी वाचवायचा असेल तर निसर्गाला जगवावे लागेल. निसर्गना वाचविण्यासाठी झाडे लावा... झाडे जगवा ...परिस्थितीला दोष देण्यापेक्षा निसर्गाला वाचविण्यासाठी उपायोजना करावे लागेल. तरच शेती... शेतकरी आणि पर्यायाने जग वाचेल....!!!

          #✍️🏻©️®️सविता तुकाराम लोटे 




#©️®️✍️Savita Tukaramji Lote
शीर्षक :- चारोळी संग्रह 
              बळीराजाच्या मनोभावनेतून 

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माझ्या वेलीवर ( दलित साहित्य कविता)

*** माझ्या वेलीवर *** माझ्या वेलीवर वेदना होत्या  बाबासाहेब तुमच्या वैचारिक आलिंगनाने   अश्रूचे सोने झाले  देहाचे मंदिर झाले  सुकलेल्या शरीर...